भारत की आन-बान और शान है हिंदी ! भारतीयों के स्वाभिमान का प्रतीक है हिंदी | Gyansagar ( ज्ञानसागर )

भारत की आन-बान और शान है हिंदी ! भारतीयों के स्वाभिमान का प्रतीक है हिंदी | Gyansagar ( ज्ञानसागर )

भारतीयों के स्वाभिमान का प्रतीक है हिंदी !
भारत माता की आन-बान और शान है हिंदी
क्रांतिकारियों के क्रांति का कारण है हिंदी
स्वाभिमान है हिंदी,पहचान है हिंदी


कौआ लाख बार भी मोर के पंख पहन ले पर वो मोर नही बन सकता ! उसी प्रकार अपने आप को दूसरे से अलग,मॉडर्न(आधुनिक) दिखने की आड़ में कुछ भारतीय विदेशी संस्कृति जैसे-आचार-विचार,वेशभूषा,भाषा को अपनाते तो है पर वो अपनी हालत मोर के पंख पहने हुए कौए जैसे कर लेते है !!
ऐसा लिखने का प्रयोजन किसी आचार-विचार,वेशभूषा य भाषा का मजाक बनाना य उसपर आवाज उठाना नही बल्कि लोगो द्वारा इनके अपनाये जाने पर भारतीय संस्कृति पर प्रभाव दर्शाना है !! ताकि किसी चीज को अपनाने से पहले उसकी उपयोगिता व् कारण को जान ले !!


विदेशी संस्कृति अपनाने वाले लोगो का भारत पर नकारात्मक प्रभाव !!

 किताबो की छपाई में,डाक्टर की दवाई में,अंग्रेजी ही अंग्रेजी !! यहाँ हम विदेशी संस्कृति का नही बल्कि उस संस्कृति को अपनाने वाले लोगो का भारत पर प्रभाव दर्शाना चाहते है !

कोई संस्कृति बहुत समय तक तभी टिक सकती है जब बहुयामी लोगो द्वारा उन नियमो का समूह (जीवन जीने के तरीके) को स्वीकारा जाये ! और संस्कृति मात्र अपनी पसंद पर नही बल्कि जलवायु,क्षेत्र,भौगौलिक दृष्टि और अनेक कारणों पर भी निर्भर करती है जो कि अधिक समय तक पालन करने के दौरान संस्कृति का रूप ले लेती है ! १९४७ की शारीरिक आजादी के बाद कुछ भारतीयों का मानसिक संतुलन इस तरह बदला कि छींक और अपानवायु भी वे विदेशी भाषा में मारते है ! आज तमाम जगह अंग्रेजी के शब्द देखने को मिल जायेंगे जो विदेशी संस्कृति का हिस्सा है, जिसकी आवश्यकता किसे है और किसे नही ,ये लेने का अधिकार भी हमारे पास नही है ! न ही हमारे पास इस बात का चयन करने का अधिकार है कि हमारे आस पास उस भाषा को प्राथमिकता दी जाये जो हमारी मूल भाषा है,क्षेत्रिय भाषा है !!

जबरदस्ती विदेशो भाषा थोपने का प्रभाव लोगो पर ये पड़ा कि आज भारत के लोग न हिंदी न अंग्रेजी और न ही अन्य देशी भाषा के अच्छे जानकार है बस सहायक शब्दों की सहायता से अपने विचारो की अभिव्यक्ति कर रहे है !
इससे न केवल उनका स्वाभाव बल्कि उनकी भारतीयता भी प्रभावित हो रही है !अंग्रेजी भाषा किस तरह हम भारतीय लोगो पर जबरदस्ती कर रही है इसके कुछ उदाहरण पर नजर डालते है !!

  • सिलाई की दुकान में,मलाई की दुकान में, अंग्रेजी ही अंग्रेजी !!

  • वकील की लड़ाई में,केस की सुनवाई में, अंग्रेजी ही अंग्रेजी !!

  • रिमोट के बटनों में,टीवी के फंश्नो में, अंग्रेजी ही अंग्रेजी !!

  • रडियो के गानों में,डीजे के गानों में, अंग्रेजी ही अंग्रेजी !!

  •  दूध की थैली में,पार्टी की रैली में, अंग्रेजी ही अंग्रेजी !!

  • स्कूल की पढाई में,कालेज की पढाई में,अंग्रेजी ही अंग्रेजी !! 


तकनीक के विकास के साथ साथ भारतीय संस्कृति का विकास !


खैर तमाम दिखावे और भेड़-चाल से ये लगने लग गया था की भारत की मूल संस्कृति का अस्तित्व अब खतरे में है ! पर तकनीक के विकास के साथ साथ भारतीय संस्कृति का ध्वज फिर फहरना शुरू हो गया है ! इसका पता इसी बात से लगाया जा सकता है कि आज भी भारत में सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषा हिंदी ही है और हिंदी को प्रचारित करने के पीछे फिल्म,सीरियल भी एक कारण है ! हालाँकि चरित्र और संस्कृति नाश करने के पीछे भी इनका अभूतपूर्व योगदान रहा है पर जब से इन्टरनेट में सोशल नेटवर्किंग की दुनिया को लोकप्रियता मिली है तब से मूल,प्रांतीय-क्षेत्रिय भाषा को अपनाने का चलन तेजी से बढ़ा है ! ऐसा अनेक कारणों से भी हुआ है ! कुछ वर्षो पहले हिंदी-संस्कृत और क्षेत्रिय भाषा की महानता पर व्याख्यान दे चुके श्री राजीव दीक्षित के व्याख्यान ने भी लोगो को अपनी भाषा का सम्मान करने और उन्हें अपनाने पर मजबूर कर दिया ! लोगो की मूल,क्षेत्रिय भाषा की पसंद,उनकी जरूरत को तकनीक और सॉफ्टवेर विषय की जानकारी रखने वाले भाइयो ने समझा और ऐसे तकनीकी सॉफ्टवेर का निर्माण किया जिससे हम अपने भाषा,संस्कृति को तवज्जो दे,सम्मान दे और उसका प्रचार-प्रसार हो ! आज सोशल नेटवर्किंग साईट जैसे फेसबुक,व्हाट्स-अप्प,ट्विटर जैसे तमाम सम्पर्क-साधनों में हिंदी व अन्य राज्य-क्षेत्रिय भाषा का तेजी से बढ़ना इस बात का प्रमाण है कि भारत की जनता अपनी संस्कृति,भाषा को अपनाने में शर्म नही बल्कि गर्व महसूस कर रही है !! हालाँकि सामाचार पत्रों द्वारा भी हिंदी और राज्य-स्तरीय भाषा को फैलने में मदद मिली पर इसका बड़े पैमाने में भाषा,संस्कृति का प्रचार आज के आधुनिक तकनीक के कारण ही सम्भव हुआ है ! भाषा न केवल अपने विचारो की अभिव्यक्ति के लिए मददगार होती है बल्कि संचार का साधन भी होती है और जिस तरह विदेशी सॉफ्टवेर कम्पनियों ने भी राज्य-स्तरीय भाषा पर आधारित इन्टरनेट और तकनीक के साधन को सुगम बनाया है इससे ये कहना गलत नही होगा कि अपने लाभ के लिए ये हमारा हित-अहित दोनों कर सकती है ! हालाँकि कुछ क्षेत्र अभी भी झुकने को तैयार नही हुए है और अड़े हुए अपनी भाषा थोपने में पर जनता के जागरूकता से ये आंकलन लगाया जा सकता है कि जल्द ही सभी चीजे अपने राष्ट्रीय भाषा,मूल,प्रांतीय,राज्य स्तरीय भाषा में भी होगी !! समस्या है तो बस खुद अपने स्वाभिमान जगाने की,क्रांति लाने की और ये संकुचित सोच को त्यागने कि की राज्य य राष्ट्रीय-भाषा से हम अनपढ़ लगते है और गंवार दिखते है !! जिस दिन अपनी मातृ भाषा को बोलने में हमने गर्व महसूस करना शुरू कर दिया उस दिन से भारतीय संस्कृति का विकास और उसे अपनाने की भावना का हर जगह शुरू हो जायेगी !





Post a Comment

Previous Post Next Post