ये कविता उन सभी लोगों को समर्पित है जिन्होंने मेरे जीवन में एक शिक्षक,गुरु की भांति मेरा मार्ग दर्शन किया है !! उनमे मेरे माता-पिता,मेरे अध्यापक व् अध्यापिका ,मेरे सगे-सम्बंधी व मेरे मित्र शामिल है !!
आकर जीवन में आपने मुझे
जीने का अर्थ बतलाया है,
धन्य हुई जो आपके मैंने
सानिध्य में ज्ञान पाया है ।।
अधीर, आतुर, उद्विग्न सी मैं
आंखों में ले स्वप्न हजार
बदलती राहें बारम्बार,
बन सारथी आपने
मार्ग अडिग बतलाया है !!
धन्य हुई जो आपके मैंने
सानिध्य में ज्ञान पाया है ।।
हैं पाप-पुण्य, सद्कर्म-दुष्कर्म क्या ?
ये बोध आपने ही करवाया है !
होती मानवता सर्वोपरी धर्म से,
विचार भी ये आप-ही से पाया है,
पग-पग आती कठिनाइयों से लड़ना डटकर
ये आप ही ने बतलाया है !!
पल-पल गिरते विश्रंभ को
संबल दे आप ही ने उठाया है !!
सच्चे गुरु की सार्थकता का परिचय
अब समझ में आया है !!
धन्य हुई जो आपके मैंने
सानिध्य में ज्ञान पाया है !!
सानिध्य में ज्ञान पाया है !!
कवियत्री - प्रियंका रत्न
अच्छे विचार मन को शुद्ध करते हैं आप के सहयोग की आवश्यकता रहे गी
ReplyDeleteजी अवश्य
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