धर्म बढ़ा या राष्ट्र ?? | Gyansagar ( ज्ञानसागर )

 धर्म बढ़ा या राष्ट्र ?? | Gyansagar ( ज्ञानसागर )

शब्दों के अभाव व् उसके अर्थ को न जानने के कारण कई लोग राष्ट्र को सर्वोपरी मानते है लेकिन वो ये भूल जानते है कि जो टीवी मीडिया इस लाइव डिबेट को करवाती है उनका मुख्य उद्देश्य विशेष गुट के लोगों का समर्थन करना मात्र होता है !! धर्म वास्तव में कई संस्कृतियों,संस्कार,नियम,व्यवहार का समूह है जो जीवन को प्रकृति के साथ संतुलित होते हुए जीने की प्रेरणा देती है !! न केवल धरती में जीना बल्कि मोक्ष की प्राप्ति के लिए भी हमारा मार्ग प्रशस्त करती है ! धर्म को अपनाने वाला सही मायने मे स्वयं की रक्षा,स्वयं का उद्धार करने में सक्षम होता है और जब इस संकल्प का समय ज्यों ज्यों बढ़ता जाता है त्यों त्यों वो स्वयं के साथ परिवार,समाज व् राष्ट्र के कल्याण में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका देने में समर्थ होता जाता है !! धर्म को संकल्पता के साथ अपने जीवन में उतारने से न केवल खुद का बल्कि जातक के इर्द-गिर्द का वातावरण भी पावन व् उससे प्रभावित अपने आप हो जाता है !! धर्म सिर्फ एक है जो सत्य है सनातन है जिसका दुरूपयोग आज कई पाखंडी साधू-संत,मौलवी,पादरी व् प्रवचनकर्ता लोगों को गुमराह करने के लिए कर रहे है और करते आये भी है !! आज धर्म को पूजा की विधि का पर्याय मान लिया गया है जबकि धर्म में अध्यात्म,योग का समाविष्ट होना जरूरी है जिसे अधिकांश धर्म-प्रेमी नही मानते !! किसी भी राष्ट्र की कल्पना धर्म के बिना संभव नही ! सत्य ही धर्म है और धर्म ही सत्य है और एक मात्र ही धर्म है वो है सत्य सनातन धर्म !!!!!

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