वही माता-पिता के लिये स्वर्ग है कि बच्चें अपने कर्तव्यों का उचित रूप से पालन करे ! उनके सात्विक सकारात्मक संस्कारो को मानकर जीवन जीते हुए अपने माता-पिता और पूर्वजो की कीर्ति बढ़ाये ! उनके शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य का ध्यान रखते हुए उनके रिश्तेदारों की मदद व उनसे समन्वय बनाये रखे ! उनका सम्मान करें व बचपन की भांति ही वृद्ध अवस्था मे उनसे दोस्ताना व्यवहार करें ! उन्हें पेड़ की विशाल छाया समान सम्मान देकर कृतज्ञ करे !
लेकिन आज वर्तमान समय मे यदि शिशु से बालक होते हुए युवा पर कुसंस्कार के वातावरण और अभद्र शब्दो से जिसके संस्कारो को प्रभावित किया गया हो, यदि उस युवा को एक सीख दी जाए कि माता-पिता भगवान का रूप होते है तो क्या एक आघात नही होगा उस इंसान पर जिसने उस नियमों और संस्कारों पर जीवन ही नही जिया जिसे स्वर्ग से सुंदर य भगवान का स्पर्श ही नही मिला वो कैसे इस वाक्य को अपने ह्रदय में विद्यमान कर ले ? ये सत्य है कि व्यक्ति अपने कर्म से महान व भगवान बनता है और माता-पिता में ये प्रतिशत उसके गृहस्थी के नियम और शिशु से बालक होते हुए युवा को पालने के अंतर्गत और कई कर्तव्यों से सम्बन्ध रखता है पर सच तो ये है कि आज एक अधूरा सच यही बताया जाता है कि माता-पिता य कोई साधु-संत भगवान है , जबकि कुछ विशेष परिस्थिति और समयकाल के दौरान एक अनूठे कर्म के कार्यान्वित होने के कारण वो व्यक्ति महान और ईश्वर समान दर्जे का अधिकारी हो जाता है पर वास्तविक ईश्वर की परिभाषा हमेशा आशंकित रहती है !
समझ मे ये नही आता कि ये दो आंखे सबकी बंद होनी है पर न जाने क्यों अपने रिश्ते में बढ़े की हैसियत रखने वाले लोग इसका नाजायज फायदा उठाते है ! अपनी गर्मी,अकड़,झँझलाहट का शिकार उनपर करते है जो उन्ही के लिये प्रार्थना करते है पर मुझे यकीन है कि ऐसे कष्टों से वे पीड़ित असमय मिसाल की अग्नि से मृत्यु को प्राप्त होंगे य एक दिन मिसाल की मौत मरेंगे !!
समझ मे ये नही आता कि ये दो आंखे सबकी बंद होनी है पर न जाने क्यों अपने रिश्ते में बढ़े की हैसियत रखने वाले लोग इसका नाजायज फायदा उठाते है ! अपनी गर्मी,अकड़,झँझलाहट का शिकार उनपर करते है जो उन्ही के लिये प्रार्थना करते है पर मुझे यकीन है कि ऐसे कष्टों से वे पीड़ित असमय मिसाल की अग्नि से मृत्यु को प्राप्त होंगे य एक दिन मिसाल की मौत मरेंगे !!
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