एक शिक्षाप्रद कहानी - अंकल मुझे टिकट लेना है | Inspirational Story | Gyansagar ( ज्ञानसागर )



 ये कहानी कोई काल्पनिक नही बल्कि सत्य घटना पर आधारित है !! आज से लगभग ५ वर्ष पूर्व दिल्ली के सरकारी स्कूल ( न्यू कोंडली ) में महेश नाम का विद्यार्थी पढ़ता था ! 8.4 Cgp से उसने प्राइवेट
स्कूल से दसवी कक्षा की थी जिसके कारण उसे सरकारी स्कूल में दाखिला मिल गया ! शहरो में माता-पिता सरकारी स्कूल की व्यवस्था देखकर खुद को कष्ट में डालकर ही सही पर अपने बच्चो को महंगी शिक्षा मुहैय्या कराते है ताकि उनके बच्चे आगामी जीवन सुखमय पूर्ण व्यतीत कर सके ! यही सोचकर महेश के माता-पिता ने बचपन से लेकर दसवीं तक मध्यम वर्गीय स्कूल में महेश को पढ़वाया और अंक अच्छे आने के कारण उसका दाखिला आसानी से सरकारी स्कूल में हो गया !
सरकारी स्कूल और प्राइवेट स्कूल में जमीन आसमान का अंतर था ! प्राइवेट स्कूल में एक तरफ प्रिंसिपल मैम राउंड पर रहकर देखती थी कि कौन टीचर क्या पढ़ा रही है और बच्चे कितना पढ़ रहे है !! हालाँकि प्राइवेट स्कूल में मैम य सर जो भी होते थे , खाली नही बैठ सकते थे क्योंकि प्रिंसिपल की डांट और नौकरी से निकाले जाने का खतरा जो था !! दूसरी तरफ सरकारी स्कूल में य तो टीचर आकर मन से पढ़ाते थे या फिर मन से बंक मारते थे और बच्चे यानि छात्रगण भी उसी के अनुरूप उनका देखा देखी करते !! वो भी उन टीचरो से य तो मन से पढ़ते य फिर मन से बंक मारते !! प्राइवेट में अंग्रेजी में अटेंडेंस खड़े होकर और सरकारी में धूप में बैठकर हाजिरी देना !! बच्चों के लाइन में लंच लेना या बच्चो से लंच अपने लिए भी मंगवाना ये कुछ सीनियर छात्र का रोज का पेशा लगभग होता था !!



हालाँकि स्कूल जाने के लिए ढाई किलोमीटर पैदल जाना कोई बढ़ी बात नही थी पर चिल चिलाती धूप में जाना ये महेश की मम्मी को थोड़ा कष्टमय लगता था ! घर की आर्थिक स्थिति शुरू से खास अच्छी नही रही थी इसीलिए वो बस से जाने के लिए कभी पैसे नही मांगता था !! लेकिन एक दिन जोर-जबरदस्ती करके महेश की मम्मी ने उसे २० रूपये दिए और बस से जाने के लिए कहा ! बस पकड़कर जाने में कोई परेशानी नही हुयी क्योंकि नॉएडा सेक्टर २२ से बस में जो चढ़ते है प्रायः टिकट लेते ही है और महेश ने भी लिया ! उस समय वर्ष २०१३ में स्कूल से घर तक के टिकट ५ रूपये के हुआ करते थे ! लेकिन स्कूल से छुट्टी होने के बाद जैसे ही बस के लिए इंतजार कर रहा था, महेश के साथ कई लगभग ५० बच्चे बस का इंतजार कर रहे थे ! महेश किसी तरह मयूर विहार फेस ३ की बस पर आगे वाले गेट से चढ़ा और कुछ बच्चे पीछे से चढ़े लेकिन चढ़ते चढ़ते ही बस वाले ने गेट पीछे का बंद कर दिया जिससे कुछ बच्चे बस से कूद गये और गिर गये ! महेश जेब में हाथ डालकर टिकट लेने जा ही रहा था कि बस ड्राईवर ने बस धीमी करके और बायीं तरफ करके खरी-खोटी सुनाने लगा,लगभग लज्जित सा कर दिया ! अपशब्द भी कहे - लेकिन दुःखी मन से महेश ने पॉकेट से ५ का सिक्का निकालते हुए  कहा - अंकल मुझे टिकट लेना है !!

तभी बस ड्राईवर बढ़े नरमी से बोलने लगा, जाओ पीछे जाओ बेटा ! बस ड्राईवर जरुर शर्मिंदा हुआ होगा पर निश्चित तौर पर महेश जितना नही ! उसके बाद महेश आज तक स्कूल जाने के लिए डीटीसी बस में अकेले सफर नही करता है !!

शिक्षा - ये स्वाभाविक है की ड्राईवर सरकारी स्कूल की पोशाक के कारण ही महेश को भी फ्री में सफर करने वाला यात्री समझ बैठा लेकिन हमे समझना चाहिए कि संसार में हर तरह के प्राणी है जो स्वाभिमान से जीवन जीना पसंद करते है !! इसीलिए विनम्रता और धैर्य के साथ ही किसी के व्यक्तित्व को जांचना-परखना चाहिए !!



सारांश सागर

सारांश सागर द्वारा प्रकाशित किया गया

अनुभव को सारांश में बताकर स्वयं प्रेरित होकर सबको प्रेरित करना चाहता हूँ !                


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