तपस्वी बोला… नहीं इस जन्म के पापों को भी ठीक-ठीक नहीं बता पाउंगा !! फिर बुद्ध ने पूछा ! अच्छा इस घोर तप से कितने पाप कटे होंगे, इसका कोई अंदाजा तो लगाया होगा, वहीं बता दो ? साधक चिढ़ गया- जब मुझे पापो की संख्या ही नहीं पता तो कितने कटे ? कितने बचे यह कैसे बताऊँ ? कैसा बेतुका प्रश्न है ? बुद्ध बोले… जो काम कर रहे हो, उसका परिणाम नहीं जानते, क्यों कर रहे हो यह भी नहीं जानते तो फिर बेतुके काम तो तुम कर रहे हो !!! मैं मगध के राजा बिंबिसार से ज्यादा सुखी हूँ क्योंकि आत्मचिंतन करके अपने कर्मों का हिसाब रखता हूँ। प्रयास करता हूं कि किसी का कोई अहित न हो जाए। शरीर को कष्ट देने के स्थान पर एकांत में आत्मचिंतन करें, सारे हल निकल आएंगे। बुद्ध ने आगे कहा… इस जन्म में जो कर्म आपको करने थे, उनसे मुह मोड़ रखा है पिछले जन्म के पाप कटे या नहीं यह तो नहीं कहा जा सकता पर यह तो तय है कि इस जन्म में कर्तव्यों से मुँह मोड़कर आप पाप कर रहे है। साधना का अर्थ केवल शारीरिक कष्ट नहीं होना चाहिए, साधना तो वास्तव में आत्मचिंतन है इसके लिए बाहरी नियंत्रण से ज्यादा जरूरी है आंतरिक परिवर्तन। इसी में आत्मशांति मिलती है। कहानी कैसी लगी हमे कमेंट करके जरुर बताये !
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