Shree Ravidas Chalisa In Hindi | श्री रविदास चालीसा | चालीसा संग्रह | Gyansagar ( ज्ञानसागर )

Shree Ravidas Chalisa In Hindi | श्री रविदास चालीसा | चालीसा संग्रह | Gyansagar ( ज्ञानसागर )
Shree Ravidas Chalisa In Hindi | श्री रविदास चालीसा 

 । । दोहा । ।

 बंदौं वीणा पाणि को , देहु आय मोहिं ज्ञान । 
पाय बुद्धि रविदास को , करौं चरित्र बखान । । 
मातु की महिमा अमित है , लिखि न सकत है दास ।
 ताते आयो शरण में , पुरवहु जन की आस

 ॥ चौपाई ॥

 जै होवै रविदास तुम्हारी , कृपा करहु हरिजन हितकारी । 
 राहू भक्त तुम्हारे ताता , कर्मा नाम तुम्हारी माता ।
 काशी ढिंग माडुर स्थाना , वर्ण अछूत करत गुजराना ।
 द्वादश वर्ष उम्र जब आई , तुम्हरे मन हरि भक्ति समाई । 
रामानन्द के शिष्य कहाये , पाय ज्ञान निज नाम बढ़ाये ।
 शास्त्र तर्क काशी में कीन्हों , ज्ञानिन को उपदेश है दीन्हों । 

 गग मातु के भक्त अपारा , कौड़ी दीन् उनहिं उपहारा । । 
पंडित जनताको लै जाई , गंग मातु को दीन्ह चढ़ाई । 
हाथ पसारि लीन्ह चौगानी , भक्त की महिमा अमित बखानी । 
चकित भये पंडित काशी के , देखि चरित भव भय नाशी के । । 
रल जटित कंगन तब दीन्हाँ , रविदास अधिकारी कीन्हाँ । 
पंडित दीजो भक्त को मेरे , आदि जन्म के जो हैं चेरे । 
पहुँचे पंडित ढिंग रविदासा , दै कंगन पुरइ अभिलाषा ।
 तब रविदास कही यह बाता , दूसर कंगन लावहु ताता ।
 पंडित जन तब कसम उठाई , दूसर दीन्ह न गंगा माई । 
तब रविदास ने वचन उचारे , पडित जन सब भये सुखारे । 
जो सर्वदा रहै मन चंगा , तौ घर बसति मातु है गंगा । ।
 हाथ कठौती में तब डारा , दूसर कंगन एक निकारा । । 
चित संकोचित पंडित कीन्हें , अपने अपने मारग लीन्हें ।

 तब से प्रचलित एक प्रसंगा , मन चंगा तो कठौती में गंगा । 
एक बार फिरि परयो झमेला , मिलि पंडितजन कीन्हों खेला । ।
 सालिगराम गंग उतरावै , सोई प्रबल भक्त कहलावै । 
सब जन गये गंग के तीरा , मूरति तैरावन बिच नीरा । 
डूब गईं सबकी मझधारा , सबके मन भयो दुःख अपारा ।
 पत्थर मूर्ति रही उतराई , सुर नर मिलि जयकार मचाई ।
 रह्यो नाम रविदास तुम्हारा , मच्यो नगर महँ हाहाकारा । 
चीरि देह तुम दुग्ध बहायो , जन्म जनेऊ आप दिखाओ । 
देखि चकित भये सब नर नारी , विद्वानन सुधि बिसरी सारी । 
ज्ञान तर्क कबिरा संग कीन्हों , चकित उनहुँ का तुम करि दीन्हों ।
गुरु गोरखहि दीन्ह उपदेशा , उन मान्यो तकि संत विशेषा । 
सदना पीर तर्क बहु कीन्हाँ , तुम ताको उपदेश है दीन्हाँ । 
मन महँ हार्योो सदन कसाई , जो दिल्ली में खबरि सुनाई ।

 मुस्लिम धर्म की सुनि कुबड़ाई , लोधि सिकन्दर गयो गुस्साई । । 
अपने गृह तब तुमहिं बुलावा , मुस्लिम होन हेतु समुझावा ।
 मानी नाहिं तुम उसकी बानी , बंदीगृह काटी है रानी ।
 कृष्ण दरश पाये रविदासा , सफल भई तुम्हरी सब आशा । । 
ताले टूटि खुल्यो है कारा , माम सिकन्दर के तुम मारा । । 
काशी पुर तुम कहँ पहुँचाई , दै प्रभुता अरु मान बड़ाई । ।
 मीरा योगावति गुरु कीन्हों , जिनको क्षत्रिय वंश प्रवीनो । 
तिनको दै उपदेश अपारा , कीन्हों भव से तुम निस्तारा ।

। ।  दोहा । । 

ऐसे ही रविदास ने , कीन्हें चरित अपार । । 
कोई कवि गावै कितै , तहूं न पावै पार । ।  
नियम सहित हरिजन अगर , ध्यान धेरै चालीसा ।
 ताकी रक्षा करेंगे , जगतपति जगदीशा । ।

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