स्वच्छता नही है कोई अभियान, ये है मनुष्य का गुण और व्यवहार- स्वयं के अनुभव के आधार पर स्वरचित कविता | Gyansagar ( ज्ञानसागर )

स्वच्छता नही है कोई अभियान, ये है मनुष्य का गुण और व्यवहार- स्वयं के अनुभव के आधार पर स्वरचित कविता | Gyansagar ( ज्ञानसागर )


आज तमाम नेता और समाज सेवा के नाम पर प्रचार करने वाले कुछ लोग शौक और लोकप्रियता के लिए झाड़ू उठाते फिर रहे है ! जो अपने घर में झाड़ू,पोछा नही कर सकते वो अब स्वच्छता का ज्ञान पेल रहे है ! इस अभियान को फ़ैलाने का उद्देश्य तो सकारात्मक था पर इस अभियान के नाम पर वोट बैंक बंटोरने वाले लोगो ने काफी गंदगी कर दी !! जो पहले कभी गुण और व्यवहार हुआ करता था वो अब अभियान का रूप ले चूका है ! खैर इस कविता को बनाने का उद्देश्य उन लोगों को सावधान करना है कि किसी गुण और व्यवहार से राजनैतिक और निजी लाभ न ले बल्कि इस अभियान को गुण और व्यवहार समझकर समाज में जनजागृति लाये नही तो आने वाले समय में शौच जाना जरूरी है ये भी अभियान बन जाये तो इसपर आश्चर्य नही ही करना चाहिए !!

खैर मेरी रचना को पढ़कर आप महसूस कर सकते है कि मेरा दृष्टिकोण इस अभियान को लेकर कैसा है !!

भूल चूका क्यों ये इंसान,स्वच्छता नही है कोई अभियान
जो था पहले कभी गुण और व्यवहार
उसने ले लिया अब अभियान का आकार
मिली थी अभियान को शुरू में सफलता अपार
पर अब है इसकी हालत खस्ता और खराब
सोचा कि मिलकर देते ताकत स्वच्छता अभियान को एक बार  
पर अब जाना है कि ये तो बन गया स्वार्थ सिद्ध करने का हथियार

है अधिकतर नेता यहां लालची,भ्रष्ट,और मक्कार
धन,लोकप्रियता और वोट के खातिर ही करते स्वच्छता अभियान का प्रचार
नेतागण होते है बड़े धूर्त,असभ्यऔर चंट,
कूड़े कचरे पर भी करते राजनीति और करते मर्यादा भंग
साफ जगह पर झाड़ू फेर कर समझते खुद को नेता समझदार
नही जानते कि जनता आपको नही बनाएगी  नेता पद के हकदार

लोगो में भी कुछ है विशेष जो फैलाये गन्दगी सरेआम
सरकारी जगह को समझे अपने शौच-प्रयोग का आवास
गुटका,तम्बाकू,रजनीगन्धा खाते खाते व्यक्ति ये बात पूछता !
कितना प्रदूषण और कचरा है देश में, इस पर सरकार को क्यों कुछ नही सूझता ?
खुद करे नशीले पदार्थ का सेवन तो उस पे कुछ सूझता नही !
गली गली थूखे दिलबाग और शिखर तो उसपे कुछ बुरा,अनैतिक लगता नही

स्वच्छता का है दिखावा हर तरफ,नही है कोई भी तन-मन से साफ
कोई उठाये झाड़ू वोट के लिए तो कोई चाहे अपना नाम प्रचार
कोई थूके विमल,कुबेर तो कोई मूते बिंदास
सरकारी जगहों को समझे अपने शौच,स्नान का आवास
नही है कूड़ेदान इतना कि फेंक सके कचरो का ढेरा
बना लिया है अपने आस पास और अपने मुँह को कचरो का मेला

मुँह लगता है कूड़ेदान जब खाते गुटखा और पान बहार
आती बदबू इतनी कि मक्खी-मच्छर घुमे इनके बाहर
लेकर मॉर्टिन स्प्रे मैं उसके मुँह में छिड़कता
वो सिगरेट,गुटखा फेंक मेरी ओर लपकता
आगे मैं पीछे वो ये सिलसिला चलते रहता
थोड़ी सी दौड़ में ही वो खांसी से हांफी लेता

चिल्लाकर मरीज उसको मैं ये बात बतलाता
स्प्रे छिड़कना तो एक तरीका था तुझको तेरी क्षमता था दिखाना
बन जाये न तू मरीज इसीलिए तुझको दौड़ाया है
नही हो जाये तुझे कैंसर,वैंचर इसीलिए तुझको भगवाया है
अब मत लेना आज से तू मुँह में सिगरेट और गुटखा
देखा अगर अब तुझे तो दे दूंगा लम्बा डंडा
मार मार के हालत खराब कर दूंगा काफी तेरी
फेफड़े से तू है ही परेशान और खस्ता हो जायेगी हालत तेरी

बन तू सभ्य इंसान न बन जानवर से बत्तर
नही करेगा नशा तो जियेगा साल 78 हिंदी में
बन्द कर दे नशा लेना तो हो जायेगा स्वस्थ्य भरपूर
नही बुलाऊंगा तुझे मरीज और तू दौड़ेगा भरपूर
दूर रहो इनसे क्योंकि ये है सभी नाश के कारण
फ़ंसा कोई तो मुश्किल है जैसे दलदल में डूबा अकारण

है ये भयंकर महामारी और मृत्यु का भी रूप
बच के रहना इससे नही तो हो जाओगे अस्वस्थ,कुरूप
नही लो तुम सब आज से नशीले तुम पदार्थ
लो ये प्रण सब कोई और विरोध करो हरबार
चाहते हो स्वस्थ्य समाज तो मानो ये सब बात
त्याग दो इन अवगुणों को और बनाओ स्वस्थ्य समाज
हमारे बच्चे तुम्हारे बच्चे सब मिलके बोलें ये बात
नशा का अब है नाश करना चाहे कोई दे या न दे हमारा साथ

जय हिन्द
वन्देमातरम्




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