एक धार्मिक पौराणिक कथा - सावित्री व्रत कथा | Gyansagar ( ज्ञानसागर )

एक धार्मिक पौराणिक कथा - सावित्री व्रत कथा | Gyansagar ( ज्ञानसागर )

हिंदू विवाहित महिलाएं जिनके पति जीवित हैं, अपने सास-ससुर एवं पति की लम्बी उम्र के लिए वट सावित्री व्रत को मानतीं हैं। महाराष्ट्र, गुजरात और दक्षिणी भारतीय राज्यों में विवाहित महिलाएं उत्तर भारतीयों की तुलना में 15 दिन बाद समान रीति से वट सावित्री व्रत मानतीं हैं। सावित्री व्रत कथा के अनुसार वट वृक्ष के नीचे ही उनके सास-ससुर को दिव्य ज्योति, छिना हुआ राज्य तथा वहीं उसके मृत पति के शरीर में प्राण वापस आए थे। पुराणों के अनुसार, वट वृक्ष में ब्रह्मा, विष्णु व महेश तीनों का वास है। इसके नीचे बैठकर पूजन, व्रत कथा आदि सुनने से मनोकामना पूरी होती है। भगवान बुद्ध को इसी वृक्ष के नीचे ज्ञान प्राप्त हुआ था। अतः वट वृक्ष को ज्ञान, निर्वाण व दीर्घायु का पूरक माना गया है।सावित्री को भारतीय संस्कृति में आदर्श नारीत्व व सौभाय पतिव्रता के लिए ऐतिहासिक चरित्र माना जाता है। सावित्री का अर्थ वेद माता गायत्री और सरस्वती भी होता है। वट वृक्ष का पूजन और सावित्री-सत्यवान की कथा का स्मरण करने के विधान के कारण ही यह व्रत वट सावित्री के नाम से प्रसिद्ध हुआ। महिलाएँ व्रत-पूजन कर कथा कर्म के साथ-साथ वट वृक्ष के आसपास सूत के धागे परिक्रमा के दौरान लपेटती हैं, जिसे रक्षा कहा जाता है। साथ ही पूजन के बाद अपने पति को रोली और अक्षत लगाकर चरणस्पर्श कर प्रसाद मिष्ठान वितरित करतीं हैं। अंततः पतिव्रता सावित्री के अनुरूप ही, अपने सास-ससुर का उचित पूजन अवश्य करें।

विवाहित महिलाओं की बीच अत्यधिक प्रचलित ज्येष्ठ कृष्ण अमावस्या के दिन आने वाले सावित्री व्रत की कथा निम्न प्रकार से है:

भद्र देश के एक राजा थे, जिनका नाम अश्वपति था। भद्र देश के राजा अश्वपति के कोई संतान न थी।उन्होंने संतान की प्राप्ति के लिए मंत्रोच्चारण के साथ प्रतिदिन एक लाख आहुतियाँ दीं। अठारह वर्षों तक यह क्रम जारी रहा।इसके बाद सावित्रीदेवी ने प्रकट होकर वर दिया कि 'राजन तुझे एक तेजस्वी कन्या पैदा होगी। सावित्रीदेवी की कृपा से जन्म लेने के कारण से कन्या का नाम सावित्री रखा गया।कन्या बड़ी होकर बेहद रूपवान हुई। योग्य वर न मिलने की वजह से सावित्री के पिता दुःखी थे। उन्होंने कन्या को स्वयं वर तलाशने भेजा।सावित्री तपोवन में भटकने लगी। वहाँ साल्व देश के राजा द्युमत्सेन रहते थे, क्योंकि उनका राज्य किसी ने छीन लिया था। उनके पुत्र सत्यवान को देखकर सावित्री ने पति के रूप में उनका वरण किया।ऋषिराज नारद को जब यह बात पता चली तो वह राजा अश्वपति के पास पहुंचे और कहा कि हे राजन! यह क्या कर रहे हैं आप? सत्यवान गुणवान हैं, धर्मात्मा हैं और बलवान भी हैं, पर उसकी आयु बहुत छोटी है, वह अल्पायु हैं। एक वर्ष के बाद ही उसकी मृत्यु हो जाएगी।ऋषिराज नारद की बात सुनकर राजा अश्वपति घोर चिंता में डूब गए। सावित्री ने उनसे कारण पूछा, तो राजा ने कहा, पुत्री तुमने जिस राजकुमार को अपने वर के रूप में चुना है वह अल्पायु हैं। तुम्हे किसी और को अपना जीवन साथी बनाना चाहिए।इस पर सावित्री ने कहा कि पिताजी, आर्य कन्याएं अपने पति का एक बार ही वरण करती हैं, राजा एक बार ही आज्ञा देता है और पंडित एक बार ही प्रतिज्ञा करते हैं और कन्यादान भी एक ही बार किया जाता है।सावित्री हठ करने लगीं और बोलीं मैं सत्यवान से ही विवाह करूंगी। राजा अश्वपति ने सावित्री का विवाह सत्यवान से कर दिया। सावित्री अपने ससुराल पहुंचते ही सास-ससुर की सेवा करने लगी। समय बीतता चला गया। नारद मुनि ने सावित्री को पहले ही सत्यवान की मृत्यु के दिन के बारे में बता दिया था। वह दिन जैसे-जैसे करीब आने लगा, सावित्री अधीर होने लगीं। उन्होंने तीन दिन पहले से ही उपवास शुरू कर दिया। नारद मुनि द्वारा कथित निश्चित तिथि पर पितरों का पूजन किया।हर दिन की तरह सत्यवान उस दिन भी लकड़ी काटने जंगल चले गये साथ में सावित्री भी गईं। जंगल में पहुंचकर सत्यवान लकड़ी काटने के लिए एक पेड़ पर चढ़ गये। तभी उसके सिर में तेज दर्द होने लगा, दर्द से व्याकुल सत्यवान पेड़ से नीचे उतर गये। सावित्री अपना भविष्य समझ गईं।सत्यवान के सिर को गोद में रखकर सावित्री सत्यवान का सिर सहलाने लगीं। तभी वहां यमराज आते दिखे। यमराज अपने साथ सत्यवान को ले जाने लगे। सावित्री भी उनके पीछे-पीछे चल पड़ीं।यमराज ने सावित्री को समझाने की कोशिश की कि यही विधि का विधान है। लेकिन सावित्री नहीं मानी।

सावित्री की निष्ठा और पतिपरायणता को देख कर यमराज ने सावित्री से कहा कि हे देवी, तुम धन्य हो। तुम मुझसे कोई भी वरदान मांगो।

1) सावित्री ने कहा कि मेरे सास-ससुर वनवासी और अंधे हैं, उन्हें आप दिव्य ज्योति प्रदान करें। यमराज ने कहा ऐसा ही होगा। जाओ अब लौट जाओ। लेकिन सावित्री अपने पति सत्यवान के पीछे-पीछे चलती रहीं। यमराज ने कहा देवी तुम वापस जाओ। सावित्री ने कहा भगवन मुझे अपने पतिदेव के पीछे-पीछे चलने में कोई परेशानी नहीं है। पति के पीछे चलना मेरा कर्तव्य है। यह सुनकर उन्होने फिर से उसे एक और वर मांगने के लिए कहा।

2) सावित्री बोलीं हमारे ससुर का राज्य छिन गया है, उसे पुन: वापस दिला दें। यमराज ने सावित्री को यह वरदान भी दे दिया और कहा अब तुम लौट जाओ। लेकिन सावित्री पीछे-पीछे चलती रहीं। यमराज ने सावित्री को तीसरा वरदान मांगने को कहा।

3) इस पर सावित्री ने 100 संतानों और सौभाग्य का वरदान मांगा। यमराज ने इसका वरदान भी सावित्री को दे दिया।

सावित्री ने यमराज से कहा कि प्रभु मैं एक पतिव्रता पत्नी हूं और आपने मुझे पुत्रवती होने का आशीर्वाद दिया है। यह सुनकर यमराज को सत्यवान के प्राण छोड़ने पड़े। यमराज अंतध्यान हो गए और सावित्री उसी वट वृक्ष के पास आ गई जहां उसके पति का मृत शरीर पड़ा था। सत्यवान जीवंत हो गया और दोनों खुशी-खुशी अपने राज्य की ओर चल पड़े। दोनों जब घर पहुंचे तो देखा कि माता-पिता को दिव्य ज्योति प्राप्त हो गई है। इस प्रकार सावित्री-सत्यवान चिरकाल तक राज्य सुख भोगते रहे। अतः पतिव्रता सावित्री के अनुरूप ही, प्रथम अपने सास-ससुर का उचित पूजन करने के साथ ही अन्य विधियों को प्रारंभ करें। वट सावित्री व्रत करने और इस कथा को सुनने से उपवासक के वैवाहिक जीवन या जीवन साथी की आयु पर किसी प्रकार का कोई संकट आया भी हो तो वो टल जाता है।

आज इस सावित्री व्रत की दुर्दशा 

आज करोड़ो लोग इस त्यौहार को मानते तो है पर इसको मनाने के पीछे जो वैज्ञानिक कारण छिपा है उसे भूलते जा रहे है ! पति के दीर्घायु के लिए तो बरगद की पूजा की पौराणिक मान्यता अपनी जगह है ही। इसके पीछे पर्यावरण संरक्षण का भी बड़ा संदेश छिपा है। वनस्पतियों में बरगद को सबसे ज्यादा आयु के साथ सबसे ज्यादा छाया देने वाला भी पेड़ माना जाता है। पूजा के बहाने बरगद को सिंचने का भी मौका मिलता है, जिससे पर्यावरण की सुरक्षा होती है।अगर इसके धार्मिक महत्व को परे देखकर देखें, तो हमें ज्ञात होगा कि यह पूजा पर्यावरण से संबंधित है। इसमें महिलाएं वट वृक्ष की पूजा करती हैं। भारतीयी संस्कृति में पेड़-पौधों को बहुत महत्व दिया गया है। संभवत: प्राचीन काल से ही लोग पर्यावरण संरक्षण के प्रति जागरूक थे। वे यह जानते थे कि अगर हमें अपनी धरती को सुरक्षित रखना है, तो पेड़-पौधों को संरक्षित करना पड़ेगा। इस सोच को मजबूती देने के लिए लोगों ने पेड़-पौधों को धर्म से जोड़ा। चूंकि, इंसान धर्म को बहुत महत्व देता है, इसलिए जिस भी पेड़ या पौधे का धार्मिक महत्व बताया गया है, लोग उसे काटते नहीं बल्कि उसे संरक्षित करते हैं। मसलन, पीपल, बरगद, करम, सखुआ, महुआ, तुलसी और केला जैसे अनगिनत पेड़ हैं, जिनकी पूजा का विधान भारतीय परंपरा में है। बावजूद इसके हमारी धरती से पेड़-पौधे कम हो गये हैं। यह एक चिंताजनक विषय है।

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