एक सामाजिक चिंतन - दीपावली का त्यौहार क्या अपना अस्तित्व खो रहा है ? | Gyansagar ( ज्ञानसागर )

दीपावली का त्यौहार क्या अपना अस्तित्व खो रहा है


नमस्कार पाठको , जिस तरह इस वर्ष 2020 को दीपवाली मनाई गयी उससे ये अंदाजा तो लगाया ही जा सकता है कि हमने दीपावली मनाने के कारण को पीछे रख दिया , श्री गणेश , माँ लक्ष्मी व् अन्य देवी-देवताओं की पूजा और उसके महत्व व् शास्त्र , शस्त्र पूजा को छोड़ हम केवल बम , पटाखे और अन्य सेलिब्रेशन जैसे पार्टी मनाना , दिए जलाना , साज सजावट व् नाच गाना और कुछ बेशर्म तो शराब और मांसाहार भी करते हुए देखे गये है ! खैर ये त्यौहार सामाजिकता को बढ़ावा देने वाला है जिसमे एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति से परस्पर मिलते है और उन्हें धन्यवाद करते है ! गले मिलते है और एक दूसरे के लिए मंगलकामनाएं करते है ! बच्चो को आशीर्वाद और उन्हें जरूरत की चीज व् नए कपड़े दिलाने का प्रचलन रहा था ! सोने चांदी को खरीदने की परम्परा में कोई कमी नही आई है पर मूल तत्व और महत्व गया हवा में ! स्वच्छता एक प्रमुख लक्ष्ण रहा था और जब हम छोटे थे तो हमे निबन्ध में पढ़ाया जाता था कि दीपावली से कुछ दिन पहले साफ सफाई और पेंट होते थे जिससे घर फिर से नया और साफ सुथरा हो जाये ! सारी धुल मिटटी और मकड़ो का जाला सपरिवार साफ़ किया जाता था लेकिन आज परिवार चार और तीन सदस्य में सिमट सा गया है ! जॉइंट फॅमिली सिर्फ टीवी पर धारावाहिक य फिल्म य ott प्लेटफार्म य वेबस सीरीज में देखने को मिल रहे है ! मेरे दादा दादी के जाने के बाद अब मेरा जन्म स्थान भी भागलपुर, भागलपुर जैसा नही लगता क्योंकि उनके रहते वो एक साथ १० परिवार का स्वागत कर पाती थी पर आज उनके बच्चे मात्र उस स्थान के टुकड़े करके य तो अलग अलग रह रहे है य बेच कर बस जीवन काट रहे है ! इतने परिवार को जोड़ने की कला हमने अपने पूर्वजो से नहीं ली !! हमने केवल उनके चीजो , विरासत की चीजो का दुरूपयोग य तो किया य उसका शोषण किया और अप्रत्यक्ष रूप से समाज में हमने छवि और सम्मान को खत्म करने का ही मात्र काम किया है ! मुझे आज भी याद है दादी के जाने के बाद तीन भाई और दो बहन ! दोनों बहन एक तरफ खड़े है आपस में बात कर रहे है और तीनो भाई उनके विरासत में पड़े हुए सामान और चीजो का बंटवारा कर रहे है , मानो जमीन और वस्तु न हो कोई मांस कर टुकड़ा हो रहा और बोली लगाने जैसी फीलिंग आ रही थी ! उस समय मै कुछ खास समझ नही पा रहा था कि ये क्या हो रहा है ! इन लोगो का दिल न जाने कैसा पत्थर था उस समय ! काश जॉइंट फॅमिली की समझ रखते और उसका महत्व समझते !! खैर निजी रूप से नही जाना चाहूँगा ! मेरे परिवार ही नही कई परिवार ऐसे है जो इससे भी घृणित कार्य कर चुके होते है ! न जाने ईमान धर्म कहाँ चला जाता है! अपने बाहुबल और अपनी मेहनत से करने के बजाय किसी के मेहनत के कमाय हुए जमीन पर आपस में उसे बंटवारा करना कैसे इन लोगो को सुहाता है ! 



दीपावली मनाने में पटाखे य दीपक सहारा बनती है वैसे ही जैसे सुंदर शरीर के लिए अच्छा भोजन और व्यायाम और योग जरूरी है लेकिन जब तक सामाजिक दायरा खत्म होता रहेगा दीपावली जैसे त्यौहार मात्र बम ,पटाखे,कैंडल और मिठाई तक ही सीमित रहेंगे ! वास्तविक मिठास जो रिश्तो में जरूरी है वो रिश्तो में कड़वाहट आ चुकी है ! रिश्तो में मिठास घोलना जरूरी है पर रिश्ते मात्र चार,पांच दिवार के बिच फ़ोन और टीवी तक सिमटते जा रहे है ! बाहर क्या हो रहा है और कौन मर रहा है सब गया हवा में हमे तो जी अपने से मतलब है ! अपने स्वार्थ की पूर्ति के लिए इन्सान इतना मतलबी होते जा रहे है कि गोवर्धन में गाय और पशुओ की पूजा का विधान जो था वो भी खत्म सा होता जा रहा है !! न जाने कहाँ और कौन सी जीवन शैली हम अपनाते जा रहे है और क्यों ? ये एक झूठी मॉडर्न सभ्यता है जिसे भविष्य में एक कलंक युग य कलंक वर्ष के प्रतीक के रूप में मनाया जायेगा !! दीप के जलने से हमे बहुत कुछ सीखने को मिलता है जैसे कई मिटटी के कण और उसमे छुपे अन्य अणु मिलकर जल,धुप,थपकी,मार,ऊष्मा के मिलने से दिया बनता है फिर घी य तेल आते है , फिर रुई मिलती है और एक छोटी सी चिंगारी अग्नि प्रज्ज्वलित करने का काम करती है !! पर समाज में हम अपनी आहुति क्या ऐसे ही दे रहे है ?? सोचियेगा जरा !!!!

दीपवाली का मूल महत्व सामाजिक एकता और उसके सुख दुःख से है ! बेशक ये पोस्ट आप ऑनलाइन पढ़ रहे है पर रिश्तो में काम,क्रोध,लोभ,मोह,अहंकार ये सब छोड़ उन्हें अच्छा बनाना शुरू करिये ! 

सिंह लग्नफल



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