इन वादियों में, टकरा चुके हैं
हमसे मुसाफ़िर, यूँ तो कई
दिल ना लगाया, हमने किसी से
किस्से सुने हैं, यूँ तो कई
ऐसे तुम मिले हो, ऐसे तुम मिले हो
जैसे मिल रही हो, इत्र से हवा
क़ाफ़िराना सा है
इश्क है या, क्या है
ऐसे तुम मिले हो...
ख़ामोशियों में, बोली तुम्हारी
कुछ इस तरह गूंजती है
कानों से मेरे, होते हुए वो
दिल का पता ढूँढती है
बेसुवादियों में, बेसुवादियों में
जैसे मिल रहा हो कोई ज़ायक़ा
क़ाफ़िराना, सा है
इश्क है या, क्या है
ऐसे तुम मिले हो...
ज़रिये तुम्हारे दर पे खुदा के
मत्था भी हम टेकते हैं
सबकी निगाहें उसपे टिकी हैं
पर हम तुम्हें देखते हैं
तुम सिखा रहे हो, तुम सिखा रहे हो
जिस्म को हमारे रूहदारियाँ
क़ाफिराना सा है...
गोदी में पहाड़ियों की
उजली दोपहरी गुज़ारना
हाय हाय तेरे साथ में, अच्छा लगे
शर्मीली अँखियों से
तेरा मेरी नज़रें उतारना
हाय हाय हर बात पे, अच्छा लगे
ढलती हुई शाम ने
बताया है कि दूर मंज़िल पे रात है
मुझको तसल्ली है ये
के होने तलक रात हम दोनों साथ है
संग चल रहे हैं, संग चल रहे हैं
धूप के किनारे, छाँव की तरह
क़ाफ़िराना सा है...
इश्क है या, क्या है
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