नमस्कार , प्रणाम ! जय छठ मैय्या की ! सभी को छठ महापर्व की शुभकामनायें जी ! बीते काफी वर्षो से छठ महापर्व पर सम्मिलित होता रहा हूँ, समय के साथ साथ काफी माताओं व् व्रती आंटियो के डाली सूप में मैंने सूर्य देव को अर्घ्य दिया है ! बचपन में दादी जी व् नानी जी के यहाँ भी देता था , मेरे अग्रज शुभम भाई , चाचा जी , बड़े पापा व् तमाम बड़े लोग बड़े बड़े जब अपने सर पर गमछा य चद्दर लपेट कर जाते थे तो वो पल आज भी याद आते है , नानी के यहाँ मामा सब जाते थे व् बड़े भैय्या सब , आज भी याद है कि एक वक्त ऐसा भी होता था जब भागलपुर के कुतुबगंज,मोहद्दीनगर में एक ही घाट पर दोनों व्रत करते थे और मै दोनों जगह अर्घ्य दे आया करता था ! बाद में प्रीतम अंकल जो पापा के मित्र है खोड़ा के उनके यहाँ भी बचपन में जाते थे ! हाल के वर्षो में खोड़ा वाले सतीश अंकल के यहाँ जाते थे ! कभी आस पडोस में मित्र की मम्मी के यहाँ , कभी पालम में मौसी के यहाँ , अलग ही रौनक व् उत्साह था वो , क्या बताऊँ कितना आन्दमय पल था वो , कितना सुंदर व् बेहतरीन, इस महापर्व की खासियत थी कि ये व्रतो में श्रेष्ठ व् पूरे परिवार की मंगलकामना करने के लिए होती थी ! अब लेकिन थोड़ा सा इस महापर्व की काया व् महिमा में बदलाव व् परिवर्तन आ रहा है !
डिजिटल होते साधन जिससे छठ महापर्व की संगीत बज सके सबके पास है पर गीत गुनगुनाने वाले मामी,चाची,बहु,आंटी,दादी,नानी कम होते जा रहे है , मूल छठ महापर्व मनाने वाले लोग काफी कम हो रहे है, युवा पीढ़ी के बच्चे रूचि कम ले रहे है ये चिंताजनक बात है ! अच्छा जिन्हें रूचि है भी तो कुछ इसे बम फोड़ने व फैशन प्रदर्शन में लगाते है , कुछ मना तो रहे है पर इसका लाभ व् मर्यादा सही से नही निभा पा रहे है , ये महापर्व एकता व् संस्कृति व् धर्म रक्षा साथ ही प्रकृति के प्रति आभार, भगवान सूर्य देव को कृतज्ञता प्रकट करने के लिए मनाया जाता रहा है ! और हो सकता है और अन्य कारण भी हो पर जिस तरह कलयुग में विकृति बढ़ रही है उसका प्रभाव भी इसपर दिखता मै महसूस कर पा रहा है , माँ छठी सभी को सद्बुद्धि दे ! उदाहरण के लिए बताता हूँ क्या क्या वो बातें है !
हम इतने बेबस है कि छठ महापर्व के लिए जिस नदी के जल को पावन व् उसकी शुद्धता व् उसके निःस्वार्थ भाव के लिए उसका विशेष सम्मान करते थे ,आज उसी नदी के जल में सीवर,नाले के पानी का घुलना और उसमे छठी व्रतियो का पूजा करना हमारी मजबूरी हो चुकी है ! छठी व्रतियो ने जो अपने पूर्वज व् अपने बड़ो को करते देखा उसमे हमेशा कुंड व् नदी तट ही हुआ करता था पर बढ़ते जल प्रदूषण संकट के कारण हमने गड्ढे करके अतिरिक्त विकल्प मात्र निकाल लिया है ! अब तो स्विमिंग पूल व् टब की भी सुविधा हो गयी है ! पार्क व् खुले मैदानों में ये सब होना शुरू हो गया है नहीं तो नदी तट पर अलग ही रौनक देखने को मिलती थी ! कभी कभी लगता है कि सरकार में बैठे मंत्री व् प्रशासन में बैठे अधिकारी ये देखकर शायद भयभीत होते होंगे कि अगर महापर्व का असली अर्थ ये श्रद्धालु सब समझ गये तो शायद उनकी सत्ता व् कुर्सी खतरे में न आ जाये इसीलिए वे एकजुटता बनाये रखने वाले , बड़े मंच व् नदी के मैदानी तट को साफ व् नदी के जल को स्वच्छ नही बनाये रखते , दूषित व् हानिकारक केमिकल का नदियों में मिलना जिसका कारण फेक्ट्री का कूड़ा, कारखाने का निकलने वाला कचरा शामिल है ये सब नदी को बर्बाद व् दूषित करता है जिसके कारण कई बार छत महापर्व करने वाले व्रतियो को त्वचा रोग व् शारीरिक रोग हो जाते है , जिसकी खबर कभी आप शायद समाचार पत्र व् न्यूज़ मीडिया में नही देख पाएंगे और अगर आज वो न्यूज़ खबर आ भी गयी तो सामाजिक प्रभाव् उसका इतना बेबस व् लाचार है कि उसका प्रकाशित होना न होना बराबर लगता है ! और ऐसे लाचार खबर व् प्रकाशन से सामाजिक परिवर्तन की आशा रखना बेकार व् समय की मात्र बर्बादी ही है !
बीते कई वर्षो से छठ महापर्व पर कुछ आम सी घटनाओं का अनुभव किया है तो सोचा आज इसपर अपने विचार लिख ही दूँ ! छठ घाट का किसी राजनैतिक पार्टी द्वारा आयोजन करवाना , हमारा टैक्स भर भरकर मिलना पर कार्य करके ऐसे दिखाना जैसे सारा पैसा नेता व् प्रशासन का निजी धन इस्तेमाल हुआ हो ! उसमे नेता के मंत्री का झूठा सम्मान की उपाधि देना जैसे माननीय , सम्मानीय , आदरणीय बेशक उस नेता को सुनने वाला कोई भी क्यों न हो य न ही हो पर चाटुकारिता व् झूठे प्रशंसा की पतंग ऐसी उड़ाई जाती है की बस ढील देते रहते है वहां के मंच संचालक ! इस तरह के आयोजन करके स्वय का महिमा मंडन करना कहीं से भी शोभनीय नही है !
गौतम नगर, दिल्ली में मै गया था शाम को तो वहां सोमनाथ भारती आये हुए थे, शायद व्रती भी थे, मुझे इनका नाम पहली बार तब सुना था जब शायद इन्होने अपनी पत्नी से कोई झगड़ा किया था जिसकी काफी न्यूज़ बनी थी और तभी से ये थोड़े कुख्यात हुए थे सो इनकी तस्वीर मेरे मन में एक नकारात्मक नेता के रूप में थी पर जब आज ये देखा कि ये तो बड़े अच्छे से बढिया बोलते है , छठ की महिमा व् कार्यकर्ता और आस पडोस के लोगो द्वारा पार्क में व्यवस्था करवाना ये बड़ी बात है अपने आप में ! लेकिन ज्यों ही सारे प्रयासों का श्रेय अरविन्द केजरीवाल को दे दिया त्यों ही मूड खराब हो गया ! स्वयं का प्रशंसा करना कोई बुरा नहीं है , कार्पयकर्रताओं को श्रेय देने से भी आत्मविश्वास और सकारात्मक संदेश जाता है पर जब हर बात की सफलता व् उसके सिद्धि होने का कारण जब आप अपने आका य बड़े मंत्री को देते हो तो वो व्रती व्यक्ति भी निंदनीय बन जाता है! एक व्रती व्यक्ति को किसी ऐसे व्यक्ति के प्रशंसा के शब्द नही बोलने चाहिये जिनसे इनके शब्द का बजन हल्का हो और लोगो का समर्थन कम मिले ! जो स्वय शराब घोटाले व् झूठे वचन व् तमाम बड़बोले पन से कुख्यात व् निंदनीय हो उसे एक श्रद्धा के मंच से उसके प्रंशसा के शब्द बोलना एक प्रोपोगंडा व् तोते की जुबान सा दर्शाता है ! खैर ये भी नही तो वहां तमाम पोस्टर पर आप व् बीजेपी के पोस्टर ऐसे लगे थे मानो एक होड़ हो , मुझे जानो , मुझे जानो और मुझे पहचानो कि मै हूँ कौन , कुछ लोग नेताओं के पास आकर क्रॉस प्रमोशन टेक्निक अपना रहे थे ताकि उनका भी प्रचार हो जाये ! निंदनीय हरकत थी !
छठ महापर्व की जिन रास्तो से व्रती माताएं निकलती है वहां पर कुछ लोग गुटखा, तम्बाकू, कुबेर,विमल पान मसाला खाकर थूका करते है जिसे देखकर हृदय काफी द्रवित हो गया , श्रद्धालुसब पर्व के कारण किसीको टोक कर झगड़ा भी नही करना चाहते और मन ही मन क्रोध को पी जाते है क्योंकि जिनकी मम्मी व् रिश्तेदार , सगे सम्बन्धी ये व्रत करती है वे शांतिप्रिय तरह से अपने पूजा को बिना विघ्न बाधा के सम्पन्न करना चाहती है , कुछ उन्ही रास्तो में सिगरेट व् बीडी पीकर वायु को दूषित व् हानिकारक बना देते है जिससे सांस लेना व्रतियो के लिए बहुत मुश्किल हो जाता है ! कुछ वर्षो पहले व्रतियो की सेवा की जाती थी , उनके पैर छुए जाते थे बेशक वे कोई भी हो और उनके रास्ते में आने वाले कंकड़ पत्थर हटाना लोग पुण्य का काम समझते थे पर आज नेता सब इतने मक्कार और प्रशासन इतना लालची , सड़ा हुआ हो गया है कि सड़को पर गटर का पानी बहता है ! नाली का पानी बहता है और कोई कुछ नही करता ! अच्छा इसमें कुछ स्थानीय लोग व् शक्तिशाली धन सम्पन्न व् छोटे मोटे नेता की भी मिलीभगत होती है जिसके कारण नाली व् सीवर की सफाई समय पर नहीं हो पाती है ! आम आदमी बेचारा अपने व्यक्तिगत जीवन में इतना परेशान है कि वे करे भी तो क्या करे , किसे शिकायत करे और किससे आस करे, ये आम आदमी को मूलभुत आवश्कताओं के लिए तरसाना बहुत घिनौना कृत्य है !
ये छठ महापर्व बहुत ही आस्था ,विश्वास , परिवार समाज की एकजुटता बनाये रखने व् प्रकृति का संरक्ष्ण व् भगवान सूर्य देव के प्रति आदर,सम्मान व् उनके योगदान की महिम का पर्व है साथ ही पूर्वांचल सहित अब तो काफी राज्यों में इसकी धूम व् इसका महात्म्य फ़ैल रहा है पर जिन बातों का मैंने जिक्र किया है वो मेरे निजी जीवन के अनुभव से कुछ सारांश मैंने आप सब तक साझा किया है , मेरा इस लेख से किसीको आहत करने की भावना नहीं है पर एक आग्रह और प्रार्थना सभी धर्मप्रेमियों से , छठ महापर्व मनाने वालो से है कि अपने त्यौहार,महापर्व पर आप अपनी मूलभूत आवश्कताओं का अधिकार हक से लीजिये, ये आपका अधिकार है कोई रहम कर्म नही और कोई योजना का हिस्सा नहीं जिसे नेता टाइप लोग पोस्टर बनाकर अपना महिमा मंडन करते रहे , उन्हें उनकी वास्तविकता से अवगत कराए कि ऐसे सोच व् भावना से अगर आप कार्य करोगे तो जनता समझदार है , कभी न कभी निचे उतार देगी , भूत उतार देगी , आपको त्याग देगी !!
जय छठ मैय्या की
जय हो सूर्य देव की !!
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